Rahul Raj Mishra
सूचना पट्टिका
सभी चित्र गूगल से साभार ग्रहण। इस ब्लोग पर लिखी सभी रचनाऎं पूर्णतया लेखक के अधिकार में सुरक्षित है।
सोमवार, 9 जुलाई 2012
दीप को जलना ही होगा
दीप को जलना ही होगा
शाम फिर ओढे चुनरियां, जब क्षितिज पर जायेगी,
तब निशा की चांदनी, अम्बर रमण पर चल पड़ेगी।
जब गगन में अन्धतम की, कालुषता बढ़ने लगेगी,
तब समर को देखकर, इस दीप को जलना ही होगा॥१॥
दीप की माला यहां पर, नैन खोकर ना रहेगी,
अन्तःमन की सारिका, चैन खोकर ना रहेगी।
घुंघरुओं की सरगमें, अपने सुरों में ना रहेगी,
सब मृत्यु शैया पर चढ़े, यमराज को मरना ही होगा॥२॥
सत्य है हर रात्रि का, यहां अन्त होकर ही रहेगा,
प्रेयसी के दुःख का हरण, बोलो क्या दुस्शासन करेगा।
आयेंगें बन दिवस क्या, श्रीकृष्ण इस कलिकाल में,
उतर गयें जब युद्ध में, तब देश हित चढ़ना ही होगा॥३॥
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियाँ:
behad saarthak rachna hai!
बहुत बढ़िया विचार....
सुन्दर रचना..
अनु
एक टिप्पणी भेजें