RAHUL RAJ MISHRA

Rahul Raj Mishra

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बुधवार, 30 मई 2012

मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना


 मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना




ये सावन की पहली बारिश का आना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना।
तेरे इन लबों की सुर्खियां हैं गुलाबी , इन्हें चूमकर हो मैं जाऊं शराबी।
लबों के मिलन पर तेरा शर्माना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥१॥

सजी कायनातें है जिस रोशनी से , है जिससे ये रोशन मेरा ये तराना।
समंदर सी गहरी उन्हीं आंखों में , मेरा दिल चाहता है अब डूब जाना।
हैं प्रेमी दिलों का यही बस फसाना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥२॥

हर पल ठहरती मचलती बदलती , तेरी इन अदाओं से तंग है जमाना।
चलना तेरा यूं मटककर, पलटकर तू देखे मेरा दिल हो जाये दिवाना।
शमां है तू मेरी मैं हूं परवाना , मुझे देखकर तेरा पलकें झुकाना॥३॥



चिड़ियों की भांति चहकना, फुदकना, जरा सी खता क्या हुई रूठ जाना।
है किसकी खता ये भी वो जानते हैं , मगर फ़र्ज था अब तो उसको मनाना।
मुहब्बत की नज्में सुनाते-२ हुआ,मैं दिवाना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥४॥

नादां है वो ये ना हम जानते थे , उस चेहरे की मासूमियत का बताना।
मुकद्दर हमारा सिकंदर था यारों , मगर था पड़ा दिल को यूं समझाना।
रुखसत से तेरी ये दिल है वीराना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥५॥

मिल के बिछड़ना जुदाई में मरना , कि फिर वो तुम्हारें बहाने बनाना।
कि तुझको कसम है मेरी तू हो जा , नहीं है गंवारा तेरा आना जाना।
आ जा सजाये दिलों का तराना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥६॥



इशारों से मुझको यूं उसका बुलाना , बगीचे में उसका मुहब्बत दिखाना।
लगाके तेरा मुझको यूं तो गले से , मेरी हर शरारत पे यूं मुस्कुराना।
ये दोनों दिलों को फूलों से सजाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥७॥

देखो मेरा प्यार में तुम समर्पण , करते हो मुहब्बत तो हमको बताना।
मैं देता हूं सातों वचन तुझको जाना , मगर एक वचन है जो तुझको निभाना।
है तुझको कसम मेरी दुल्हन सजाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥८॥

तेरे गेसुओं की घनी छांव में मैं , बनाऊं तेरा मेरा एक आशियाना।
समां जा तू मेरे आगोश में अब , यही एक ख्वाहिश है ओ जाने जाना।
हुआ शहरे आम मेरा अफसाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥९॥


मेरे हमसफर को खुदा का बुलाना , उसके बिना मेरा यूं टूट जाना।
कि टूटा दिलों का तरन्नुम तराना, कि मैं हूं भटकता नहीं है ठिकाना।
लूटा मेरी चाहत का खजाना , यूं राहे सफर में तेरा छोड़ जाना॥१०॥

यूं रातों को तेरा ख्वाबों में आना , मेरी चाहतों को यूं हरपल रूलाना।
मुकद्दर है मेरा मैं रोता रहूंगा , कि आंखों को मेरी है आंसू बहाना।
ये सावन का मौसम तेरा य़ूं बिछड़ना , यूं राहे सफर में तेरा छोड़ जाना॥११॥

तू आजा जमीं पर सताये जमाना , दिया है वचन जो तुझे है निभाना।
कि बुझता है दीपक मिटती है हस्ती, मुश्किल है बिन तेरे जीवन बिताना।
जमीं पे नहीं है कोई काम मेरा , बता दे फलक पर कहां घर है तेरा।
कि मौला मेरे तू इतना करम कर, लौटा दे उसको तू इतना रहम कर।
ये  सावन की पहली बारिश का आना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥१२॥


राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन)

8 टिप्पणियाँ:

राजीव तनेजा ने कहा…

वाह....बहुत बढ़िया

Unknown ने कहा…

achi lagi kavita

राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन) ने कहा…

आभार श्रीमान्। राजीव जी, बन्टी जी आप यूं ही मार्गदर्शित करते रहें।

Unknown ने कहा…

ap bahut he accha likhte hai....

राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन) ने कहा…

आभार सुभासिनी जी

संजय भास्‍कर ने कहा…

ला-जवाब" जबर्दस्त!!

Unknown ने कहा…

ye kavita mujhe bi bahut acchi lagi... baar baar padhne mn hota hai.....

Unknown ने कहा…

'फूल खिलते हैं, बहारों का समा होता है
ऐसे मौसम में ही तो प्यार जवाँ होता है
दिल की बात लबों से नहीं कहते
ये अफसाना तो निगाहों से बयाँ होता है'

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