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RAHUL RAJ MISHRA

Rahul Raj Mishra

Rahul Raj Mishra

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गुरुवार, 19 जून 2014

लफ्ज-ए-अहसास

कभी उसको कहा मैंने कभी खुद को ही समझाया,
मुहब्बत एक साजिश है नहीं कोई भी बच पाया।।

अजब हालात है मनवा तेरे तो रब के सामने,        
कभी उसे माँगने तो कभी भूलने की दुआ करता है।।

साथ कोई भी नहीं है,  हर कोई मजबूर है।
हो गये थे पास कितने, आज कितनी दूर हैं।

नेत्र हमारा सजल रहा है,          
अश्क हमारा गजल रहा है।      
जब सारी दुनिया जान चुकी तो,
लगता है कुछ बदल रहा है।।

जो भी अब तक सफल रहा है,  
वक्त पे करता अमल रहा है।  
समय बड़ा ही नाजुक है अब,
लगता है कुछ बदल रहा है।।

आदमी हैवानियत का हर नजारा सह गया,        
जुल्म देखा तेरा तो मैं दंग फिर भी रह गया।।

रात कितनी लम्बी है, ये तब मुझे अहसास हुआ।
जब आँखों ही आँखों में हर पल बिताया मैंने।।

मुहब्बत से शिकायत और बगावत हम नहीं करते,
उसे बस भूल जाने की ही एक फरियाद है मेरी।।

मेरे प्रणय मिलन की तृष्णा पूरी हो जाती कैसे ।
बिना तेल, दीपक की बाती बोलो जल पाती कैसे ।।
प्रेम जगत में अपना संबल ढूँढ नहीं पाता कोई,
ख्वाब तुम्हारे थे आँखों में नींद भला आती कैसे ।।

हर एक जर्रे ने मुझको यूँ सिखाया है जमाने में,
खुदगर्जी यहाँ जीने का बस एक सहारा है।।

ठुकराता गया मुझे वो मुहब्बत का सौदागर,
मैं हर घड़ी उसे ही अपनाता चला गया।।

दुनिया ने जब भी जुल्म की हदों को पार किया,
मेरा विश्वास तुझमें और भी गहराता चला गया।।

एक तारीख मुकर्रर कर दो तुम मेरे फसाने की,
यूँ किश्तों की मौत अब गंवारा नहीं मुझे।।

जीवन है अभिशाप सरीखा,फिर कैसे उपकार लिखूँ,
दीन हीन की नम आँखों पर कैसे मेघ मल्हार लिखूँ।
मन आकुल है देख दशा अब सोने वाली चिड़िया की,
तो फिर कैसे आज महकते शब्दों में श्रृंगार लिखूँ।।

भरें रंग प्रीत के तो , जिंदगी फनकार लगती है।
मिले गर साथ उसका,जिंदगी उपकार लगती है।
मुहब्बत जिंदगी का, एक साहिल जो उतरना है,             जिओ गर हौसले से, जिंदगी दमदार लगती है।।

कामयाबी का हुनर तो मेरी रग-रग में बसता था,             फर्क इतना था कि बस तेरे नाम जिंदगानी थी।।
रविवार, 15 जून 2014

लफ्ज-ए-दिल

एक इंसान की वजह से मुहब्बत के मायने बदल गये,  कभी इबादत तो आज कयामत लगती है मुझे।।

शराफत छोङ दी उसने, बेहयाई इस कदर छाई।
उसने ही साथ छोङ दिया जो कहता था, हूँ  मैं परछांई।।

अब तो तेरे जिक्र से भी दर्द होता है मुझे,
एक जमाना था कि हम तेरे नाम से जिया करते थे। तुझसे जुङी हर चीज से रूसवाई सी हो गयी है मुझे, वरना तो तेरे टूटे बालों को भी हम संजो के रखते थे।।

हम तो सिर्फ हमारी आदतों से बदनाम हैं,
वरना खामियों का जलवा तो तुम्हारा ही है।।

हम तो निकले थे तलाशे इश्क में,
सारे जमाने से बगावत करके।
निभायी हमने मुहब्बत सनम से,
हर कोशिश अदावत करके।।
जाने क्यूँ उसने इस कदर,
 मेरा दिल चकनाचूर किया।
 खुश तो वो भी न रह सकेंगे,
मुहब्बत की खिलाफत करके।।

इंसान की दुनिया को जब भी धोखे की मिशाल देऩी होगी, बस तुम्हारा नाम  ही चार चांद लगा देगा।।

आया वो ये कहते हुये, तेरे बिन रह नहीं सकता।
कितना प्यार था मुझको, बयां कर भी नहीं सकता।। उसको सौंप दी जिंदगी की हर उम्मीद मैंने।
अब वो ही कहता है, तेरे संग रह नहीं सकता।।

जिंदगी तक कुर्बान की जिसके सुकून पर,
दुनिया का हर वो शख्स बेईमान निकला।।

मैं यकीं दर यकीं करता चला गया,
और वो बेवफाई साबित करता रहा।
वो खुश होकर जीता रहा जिंदगानी में,
मैं यहाँ पल पल मरता रहा।।

मेरी गुमशुदगी इस तरह भा गई हैै मुझे,
अब तो गुमशुदा रहने का शौख सा हो गया है।।

शिकवा नहीं उससे की उसने मुहब्बत में धोखा दिया,
दर्द तो सिर्फ ये है कि हम भरोसा करते रहे।।                        
मेरे सारे शौख मैंने ही कत्ल कर डाले,
दुनिया में मुसीबतों का जब तकाजा हुआ मुझे।।            
मेरा पैगाम तुम तक गर पहुँच जाये तो जाहिर हो,
दिल जोड़ने दिल तोड़ने में तुम ही माहिर हो।।

मैं तो बहता पानी ही था, पाकर उसको मैं ठहर पड़ा। जब खुद का मुझको भान हुआ, अपऩी ही लय में निकल पड़ा।।

उसकी बेवफाई का नमूना इससे बढ़कर क्या होगा,
अपने भी सारे इल्जाम मेरे दामन में भर दिये।।

शराफत से जब तलक जीता रहा राहुल,                       हरेक इंसा जिंदगी में नश्तर चुभोता रहा।
गुरुवार, 12 जुलाई 2012

बेनियाजी दौर



बेनियाजी दौर


कहीं अल्फ़ाज बिकते है, कही इल्जाम बिकते है,
बेनियाजी दौर में यहां, कई बस नाम बिकते है।
मजलिस में हर खुद्दार पर, यह काबिजे-नातमामी,
जओफ़ समझो ना मेरी, यहां बस जाम बिकते हैं॥
सोमवार, 9 जुलाई 2012

दीप को जलना ही होगा


    दीप को जलना ही होगा



शाम फिर ओढे चुनरियां, जब क्षितिज पर जायेगी,
तब निशा की चांदनी, अम्बर रमण पर चल पड़ेगी।
जब गगन में अन्धतम की, कालुषता बढ़ने लगेगी,
  तब समर को देखकर, इस दीप को जलना ही होगा॥१॥

दीप की माला यहां पर, नैन खोकर ना रहेगी,
अन्तःमन की सारिका, चैन खोकर ना रहेगी।
घुंघरुओं की सरगमें, अपने सुरों में ना रहेगी,
 सब मृत्यु शैया पर चढ़े, यमराज को मरना ही होगा॥२॥

सत्य है हर रात्रि का, यहां अन्त होकर ही रहेगा,
प्रेयसी के दुःख का हरण, बोलो क्या दुस्शासन करेगा।
आयेंगें बन दिवस क्या, श्रीकृष्ण इस कलिकाल में,
उतर गयें जब युद्ध में, तब देश हित चढ़ना ही होगा॥३॥

लिखिए अपनी भाषा में