RAHUL RAJ MISHRA

Rahul Raj Mishra

Rahul Raj Mishra

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बुधवार, 13 जून 2012

पितृदिवस





वटवृक्ष निस्तब्ध अपनी सजीवता को लिए खड़ा है। उसकी महानता और विशालता का किसी को संशय नहीं है, पर फिर भी उसकी इस अडिग विशालता का संबल है; उसकी जड़ें। यथावत् पिता का स्थान वह वटवृक्ष है, जिस के छांव तले समूचा परिवार अपनी रगगुजर बसाता है। १७ जून को पितृ दिवस (father's day) मनाया जायेगा पर इस समय विचारणीय बिन्दू यह नहीं है कि मनाया जायेगा; बल्कि यह है कि क्या १७ जून को ही पिता को याद किया जायेगा। उस समर्पित आत्मा के लिए जिसने पालने-पोसने से लेकर जीवनपर्यन्त आपकी हर आवश्यकता को शिरोधार्य कर उसे अपने निवाले से ज्यादा महत्व दिया है, उसके लिए केवल एक दिन निर्धारित कर आप क्या अपने कर्तव्य का निर्वाह करेंगें। 
     भगवान मनु ने मनुस्मृति में कहा है कि- "यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम्। न तस्य निष्कृतिर्शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि॥" माता-पिता के ऋण से सौ वर्ष भी सेवा करने पर उऋण नहीं हुआ जा सकता। माता का प्रेम सत्य है और यथार्थ भी, परन्तु पिता माता की भांति प्रेम प्रदर्शित क्यों नहीं करते? तो इसका उत्तर केवल इतने में ही परिपूर्ण हो जाता है कि उन पर आपके भावी जीवन की गंभीरता और मानव समाज का वह अदृश्य बोझ होता है ,जो आपका पिता बनने के फलस्वरूप उन्हें मिलता है। वह चाहकर भी कभी आपको यह नहीं कह पाते कि इस परिवार के चिराग तुम ही मेरा संसार हो। जिस प्रकार वह अनेक परिस्थितियों का सामना करते है, उसी प्रकार उन्हें यह भी बोध होता है कि भावी जीवन में आपको भी शायद उन मुश्किलों का सामना करना पड़े और इसी सोच की उधेड़बुन में वह आपको उन परिस्थितियों के समक्ष तुलनात्मक भाव से उनका सामना करने का गुर सिखाते है। पिता के लिए निःसन्देह अपनी संतान नौका की पतवार होती है, पर वह भाव अचल है, अटल है, स्तब्ध है, अनसुने है, अनकहे है। तो इस पितृदिवस पर केवल इतना विचार करें कि कर्तव्यपरायणता की मूर्ति हमारे लिए अपना जीवन समर्पण करने वाले उस वटवृक्ष की जड़ों के रुप में हमने कहां तक अपनी भूमिका निभायी है।


                                                  राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन)



रविवार, 10 जून 2012

मां




मधु की वह एक बूंद है, जो सागर का खार मिटा डाले,
जीवन पथ में, सब कष्टों में, वह सारा भार मिटा डाले।
वह प्रतिमा है नेह, त्याग की, सब रिश्तों की सच्चाई है,
वह केवल मां है जो अपनों पर, सारा संसार मिटा डाले॥
बुधवार, 6 जून 2012

दिल





फना इस दिल में एक हसरत सी रहती है।
हरपल ना जाने क्यों एक गफलत सी रहती है।
एक खुदगर्ज को खुदा मान लिया था मैंने,
अब ना जाने क्यों उससे नफरत सी रहती है॥

राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन)
बुधवार, 30 मई 2012

मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना


 मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना




ये सावन की पहली बारिश का आना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना।
तेरे इन लबों की सुर्खियां हैं गुलाबी , इन्हें चूमकर हो मैं जाऊं शराबी।
लबों के मिलन पर तेरा शर्माना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥१॥

सजी कायनातें है जिस रोशनी से , है जिससे ये रोशन मेरा ये तराना।
समंदर सी गहरी उन्हीं आंखों में , मेरा दिल चाहता है अब डूब जाना।
हैं प्रेमी दिलों का यही बस फसाना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥२॥

हर पल ठहरती मचलती बदलती , तेरी इन अदाओं से तंग है जमाना।
चलना तेरा यूं मटककर, पलटकर तू देखे मेरा दिल हो जाये दिवाना।
शमां है तू मेरी मैं हूं परवाना , मुझे देखकर तेरा पलकें झुकाना॥३॥



चिड़ियों की भांति चहकना, फुदकना, जरा सी खता क्या हुई रूठ जाना।
है किसकी खता ये भी वो जानते हैं , मगर फ़र्ज था अब तो उसको मनाना।
मुहब्बत की नज्में सुनाते-२ हुआ,मैं दिवाना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥४॥

नादां है वो ये ना हम जानते थे , उस चेहरे की मासूमियत का बताना।
मुकद्दर हमारा सिकंदर था यारों , मगर था पड़ा दिल को यूं समझाना।
रुखसत से तेरी ये दिल है वीराना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥५॥

मिल के बिछड़ना जुदाई में मरना , कि फिर वो तुम्हारें बहाने बनाना।
कि तुझको कसम है मेरी तू हो जा , नहीं है गंवारा तेरा आना जाना।
आ जा सजाये दिलों का तराना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥६॥



इशारों से मुझको यूं उसका बुलाना , बगीचे में उसका मुहब्बत दिखाना।
लगाके तेरा मुझको यूं तो गले से , मेरी हर शरारत पे यूं मुस्कुराना।
ये दोनों दिलों को फूलों से सजाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥७॥

देखो मेरा प्यार में तुम समर्पण , करते हो मुहब्बत तो हमको बताना।
मैं देता हूं सातों वचन तुझको जाना , मगर एक वचन है जो तुझको निभाना।
है तुझको कसम मेरी दुल्हन सजाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥८॥

तेरे गेसुओं की घनी छांव में मैं , बनाऊं तेरा मेरा एक आशियाना।
समां जा तू मेरे आगोश में अब , यही एक ख्वाहिश है ओ जाने जाना।
हुआ शहरे आम मेरा अफसाना , मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥९॥


मेरे हमसफर को खुदा का बुलाना , उसके बिना मेरा यूं टूट जाना।
कि टूटा दिलों का तरन्नुम तराना, कि मैं हूं भटकता नहीं है ठिकाना।
लूटा मेरी चाहत का खजाना , यूं राहे सफर में तेरा छोड़ जाना॥१०॥

यूं रातों को तेरा ख्वाबों में आना , मेरी चाहतों को यूं हरपल रूलाना।
मुकद्दर है मेरा मैं रोता रहूंगा , कि आंखों को मेरी है आंसू बहाना।
ये सावन का मौसम तेरा य़ूं बिछड़ना , यूं राहे सफर में तेरा छोड़ जाना॥११॥

तू आजा जमीं पर सताये जमाना , दिया है वचन जो तुझे है निभाना।
कि बुझता है दीपक मिटती है हस्ती, मुश्किल है बिन तेरे जीवन बिताना।
जमीं पे नहीं है कोई काम मेरा , बता दे फलक पर कहां घर है तेरा।
कि मौला मेरे तू इतना करम कर, लौटा दे उसको तू इतना रहम कर।
ये  सावन की पहली बारिश का आना, मुझे देखकर तेरा नजरें झुकाना॥१२॥


राहुल राज मिश्र (वात्स्यायन)

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